आस्था के नाम पर पर्यावरण से खिलवाड़"
आस्था का हवाला देकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। अब इसे नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया है, कल मुझे जीवन में पहली बार आदिवासी देवी माया देवी माताजी के मंदिर पे जाने का मोका मिला ,लेकिन वहा जाके जो नजारा देखने को मिला उसके बाद मेरा तो दिमाग ही खराब हो गया.
आप देख सकते केसे पालस्टिक के बोटोलो को नदी में फेका गया है केसे नारियल और पालस्टिल एक साथ जलाया गया है🤦🤦 क्या किया जाए इसे इंसानों का? जंगलों के बीचों में प्रकृति का मजा लेने जाते हो क्या फिर उसको नष्ट करने जाते हो?? ऊपर से वहा चार्ज भी वसूला जाता है फिर भी सफाई में कुछ नही होता🤬🤬 हमारे घर का मंदिर को तो हम साफ सुथरा रखते है तो फिर हम क्यों प्रकृति को बर्बाद करते है?? हमसे लाख गुना तो जानवर है.
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✒️ brijesh bhusara- ..
#खाज्या_नायक आदिवासी चेतना के पहले प्रखर योद्धा शहादत दिवस पर कोटि कोटि नमन जोहार । क्राँतिकारी - खाज्या नायक निमाड़ क्षेत्र के सांगली ग्राम निवासी गुमान नायक के पुत्र थे जो सन् 1833 में पिता गुमान नायक की मृत्यु के बाद सेंधवा घाट के नायक बने थे। उस इलाके में कैप्टन मॉरिस ने विद्रोही भीलों के विरूद्ध एक अभियान छेड़ा था जिसमें खाज्या नायक ने सहयोग दिया था जिसमें खाज्या नायक को ईनाम दिया गया था। बाद में 1 खाज्या को निलंबित कर दिया था यहीं से खाज्या का जीवन पलटा और उसने दो सौ आदिवासी लोगों का एक दल बना लिया था। एक हत्या के जुर्म में 1850 में ब्रिटिश सरकार ने उसे बंदी बना लिया और 10 साल की सजा दी गई। किन्तु 1856 में उसे छोड़ दिया गया और फिर वार्डन के लिए नौकरी दी गई किन्तु खाज्या ने नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़ा। खाज्या की भूमिका - खाज्या नायक आदिवासी चेतना का पहला प्रखर योद्धा थे जिन्होंने अंग्रेजों से सीधे युद्ध किया था। सन् 1807 की क्राँति में जिसने बड़वानी क्षेत्र के भीलों की बागडोर संभाली। सन् 1857 के महासंग्राम के कुछ समय पूर्व से ही खाज्या नायक क्राँति महानायक तात्या
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