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खाज्या_नायक आदिवासी चेतना के पहले प्रखर योद्धा

 #खाज्या_नायक आदिवासी चेतना के पहले प्रखर योद्धा

शहादत दिवस पर कोटि कोटि नमन जोहार ।

क्राँतिकारी - खाज्या नायक निमाड़ क्षेत्र के सांगली ग्राम निवासी  गुमान नायक के पुत्र थे जो सन् 1833 में पिता गुमान नायक की मृत्यु के बाद सेंधवा घाट के नायक बने थे। उस इलाके में कैप्टन मॉरिस ने विद्रोही भीलों के विरूद्ध एक अभियान छेड़ा था जिसमें खाज्या नायक ने सहयोग दिया था जिसमें खाज्या नायक को ईनाम दिया गया था। बाद में 1 खाज्या को निलंबित कर दिया था यहीं से खाज्या का जीवन पलटा और उसने दो सौ आदिवासी लोगों का एक दल बना लिया था। एक हत्या के जुर्म में 1850 में ब्रिटिश सरकार ने उसे बंदी बना लिया और 10 साल की सजा दी गई। किन्तु 1856 में उसे छोड़ दिया गया और फिर वार्डन के लिए नौकरी दी गई किन्तु खाज्या ने नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़ा।



खाज्या की भूमिका - खाज्या नायक आदिवासी चेतना का पहला प्रखर योद्धा थे जिन्होंने अंग्रेजों से सीधे युद्ध किया था। सन् 1807 की क्राँति में जिसने बड़वानी क्षेत्र के भीलों की बागडोर संभाली। सन् 1857 के महासंग्राम के कुछ समय पूर्व से ही खाज्या नायक क्राँति महानायक तात्या टोपे के सम्पर्क में थे। ग्वालियर व पुनासा के क्रांतिकारियों के  द्वारा निमाड़ में होने वाले पत्रों के आदान-प्रदान में खाज्या नायक की प्रमुख भूमिका थी। खाज्या के संगठन में भीलों के अलावा मकरानी और अरब योद्धा भी शामिल थे। इस दल में 800 सौ लोग थे जिनमें 150 बंदूकची, 80 मकरानी और अरब भी थे।


 महत्वपूर्ण बिन्दू-खाज्या का भीलों पर बहुत ज्यादा प्रभाव था भीलों को भी खाज्या पर पूरा भरोसा था। 1 जून 1858 को लै0 एटकिन्स और लै0 पोरबीन ने नेवली के दक्षिण-पश्चिम में खाज्या के दल पर आक्रमण कर दिया जिसमें खाज्या की हार हो गई बावजूद इसके सिरपुर से पाँच मील दूर तक सभी भील खाज्या के दल में शामिल हो गये थे। दो-तीन अन्य गांवों बोलरक, करेरा, रूपखेड़ा के लगभग सौ भील भी खाज्या दल में आ गए थे।


खाज्या का संघर्ष और मृत्यु- खाज्या नायक एक आदिवासी आस्था से लबरेज व्यक्ति थे। वह धार्मिक थे एक दिन खाज्या पूजा करने के लिए नदी में सूर्य को नमस्कार कर रहा था तब अंग्रेजों के भेजे रोहिद्दीन ने खाज्या की पीठ पर गोली चला दी खाज्या गिर पड़ा। मरते समय खाज्या ने कहा मेरे बेटे की फिकर करना, यह देख खाज्या की बहन आयी, जिसे मार दिया गया। रोहिद्दीन ने खाज्या के 14 साल के पूत्र को पकड़ लिया। 3-4 अक्टूबर 1860 खाज्या का सिर काटकर मिसरी खाँ और शेखनन्नू के साथ सिरपुर लाए जहाँ तत्कालीन कलेक्टर एवं अन्य अधिकारी मौजूद थे।संघर्ष और मृत्यु


सन् 1860 की शुरूआत में खाज्या नायक पर जब ज्यादा दबाव पड़ा तो वह बड़वानी चला गए और वहाँ भी विद्रोह का वातावरण बनने लगा। बर्च, होसिलबुड तथा एटकिन्स को खाज्या नायक को पकड़ने के लिए भेजा गया। खाज्या नायक ने अपने दल के दो हिस्से किये और को अम्बापावनी और दूसरे को ढाबाबावली में रखा। 1 जुलाई को दोनों पक्षों का सामना हुआ। विद्रोही भागने लगे और एक बीहड़ में जाकर छुप गये। अँधेरा होने और बारिश होने के कारण ब्रिटिश टुकड़ी ने पीछा करना बंद किया और अगले दिन भूरागढ़ रवाना हो गयी और वहाँ से 25 मीन दूर पलसनेर लौट आयी। इसके बाद हिसलवुड और स्काट की मुठभेड़ खाज्या नायक के दल से हुई। विद्रोहियों के बारूद के ढेर को तोप के गोले से उड़ दिया गया और विद्रोहियों के करीब 1500 लोग मारे गये और 150 लोग पकड़े गये जिन्हें पेड़ पर बाँधकर गोली से उड़ा दिया गया। सेना के हाथ बहुत सा सामान लगा जिसमें चांदी की 70 सिल्लियाँ भी थीं। खाज्या के सभी साथी भाग गये या बंदी बना लिये गये।

 

इसके बाद लै0 एटकिन्स की कमाने में एक टुकड़ी खाज्या नायक के विरूद्ध भेजी गयी। खाज्या के साथ भील, मकरानी और अरब लड़के भी थे। गोलीबारी में एटकिन्स गंभीर रूप से घायल हो गया और अब जमादार मोतीलाल कमाण्ड करने लगा। इसके बावजूद खाज्या नायक पकड़ा नहीं जा सका। इस पराजय के बाद सभी मकरानियों ने खाज्या का साथ छोड़ दिया और उसके साथ भील ही रह गये। उसे साथियों की तलाश थी। पुलिस अधिकारी को जब इसके बारे में पता चला तो उसने सादा वेश में रोहिद्दीन नाम के एक मकरानी जमादार को खाज्या के पास नौकरी की तलाश में भेजा। रोहिद्दीन वहाँ गया जहाँ खाज्या अपना पड़ाव डाले हुए था। उसे खाज्या के आदमियों ने पकड़कर खाज्या के पास पेश किया। खाज्या ने उसे कुरान की शपथ दिलाई कि वह कभी विश्वासघात नहीं करेगा। भीमा नायक भी इन दिनों खाज्या के पास थे। भीमा ने खाज्या को चेतावनी दी कि यह मकरानी बड़ा शातिर है और वह धोखा देगा, उस पर विश्वास मत करो। इस पर रोहिद्दीन ने कसमें खाई और खाज्या ने उसे अपने पास रख लिया। भीमा नायक जब तक खाज्या के पास थे तब तक रोहिद्दीन खाज्या को पूरी तरह विश्वास में नहीं ले सका। कुछ दिन बाद भीमा चले गए तब रोहिद्दीन को मौका मिला।  एक दिन जब खाज्या स्नान करके सूर्य की ओर मुँह करके खड़ा था तभी रोहिद्दीन ने गोली चला दी और खाज्या गिर पड़ा। मरते समय खाज्या ने कहा 'मेरे बेटे पोलादसिंह की फिकर रखना' यह देख कर खाज्या की बहिन आयी तो रोहिददीन ने उसे भी मार डाला। यह घटना 10-11 अप्रेल 1860 की है। रोहिद्दीन ने खाज्या के 14 साल के बेटे को पकड़ लिया और खाज्या का सिर काटकर मिसरी खाँ तथा शेख नन्नू के साथ सिरपुर ले आय। उस समय कलेक्टर तथा कुल और भी अधिकारी मौजूद थे। खाज्या नायक के शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया।


रोहिद्दीन को जमादार बना लिया गया। उसे तीन सौ रुपये का इनाम भी दिया गया और उसे नंदुरबार भेज दिया गया। तीन माह बाद ही रोहिद्दीन की भी मृत्यु हो गयी।

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